Print Icon वायुवाहित सर्वेक्षण एवं सुदूर संवेदन

वायुवाहित सर्वेक्षण एवं सुदूर संवेदन वर्ग यूरेनियम खनिजीकरण हेतु अन्वेषण एवं आगामी सर्वेक्षण हेतु लक्षित क्षेत्रों को ढूंडने तथा वायुवाहित (फिक्सड विंग / हेलीकाप्टर) भूभौतिकीय सर्वेक्षण आंकड़ा अर्जित करने उसे संसाधित, परिभाषित, समाकलन एवं मॉडलिंग करने हेतु उत्तरदायी है । प.ख.नि ने 1955 में स्वदेश में विकसित और डिजाइन की गई गामा रे टोटल काऊंट सिस्टम के साथ वायुवाहित सर्वेक्षण आरंभ किया था । 1972 में (50 लीटर) विस्तृत मात्रा NaI(Tl) डिक्टेटर के साथ उच्च संवेदनशीलता वायुवाहित गामा के स्पेक्ट्रोमीटर (AGRS) और प्रोटोन प्रिसेशन मैग्नेटोमीटर, विकसित कर सर्वेक्षण हेतु परिनियोजित किया गया । वर्ष 1997 से 2002 के दौरान सी एस-वैपोर मैग्नेटोमीटर एवं ग्लोबल पोजिशनिंग प्रणाली के साथ AGRS ने व्यापक सर्वेक्षण किया। फिक्स्ड विंग प्लेटफार्म का प्रयोग करते इस प्रणाली से कुल 5 लाख लाइन कि.मी. के आंकडे किये गये ।

वी.टी.ई.एम.

1984 में आई.ए.ई.ए. मानकों के अनुसार निर्मित किए गए सिविल विमानपत्तन, नागपुर के कैलिब्रेशन पैड्स का प्रयोग वायुवाहित / हेलिवाहित सर्वेक्षण करने से पूर्व स्ट्रिंपिंग रेशो एवं प्रणाली संवेदनाओं की गणना तथा गामारे स्पेक्ट्रोमीटर्स के कैलीब्रेशन हेतु किया जाता है । कुल गामा रेडियोएक्टिविटी तथा प्रत्येक रेडियो तत्वों के उच्च तनुकरण गुणांक के निर्धारण हेतु देवरकोंडा जिला नलगोंडा, तेलंगाना एवं मल्हारबोदी, भंडारा जिला, महाराष्ट्र में स्थित प्रकृत भूभाग की दो टेस्ट स्ट्रिप्स का उपयोग किया जा रहा है । वर्तमान में, इन प्रणालियों का केलिब्रेशन स्वदेश में विकसित पोर्टेबल केलिब्रेशन पैड्स से किया जा रहा है, जो प्रभावशाली हैं और हेलिवाहित सर्वेक्षण क्षेत्रों में ले जाए जा सकते हैं ।
पखनि ने देश के विभिन्न भूविज्ञान संबंधी क्षेत्रों में चुंबकीय एवं गामा-किरण स्पेक्ट्रोमित्तीय, टाइम डोमेन इलेक्ट्रोमेग्नेटिक (FDEM and TDEM) में उच्च संकल्प, उच्च संवेदनशीलता बहुत निकट से अर्जित की है । प.ख.नि ने वर्स्टाइल टाइम डोमेन इलेक्ट्रोमेग्नेटिक (VTEM) प्रणाली, एडवांस हेलीबोर्न गामा रे स्पेक्टोमीटर, सी एस-मेग्नेटोमीटर तथा जी टी-1ए ग्रैविमीटर का क्रय किया है जिसका उपयोग हाई रिजोल्यूशन आंकड़ा अर्जित करने में सफलतापूर्वक किया जा रहा है ।

प्रणालीग्राविमीटर

मृदा एवं शैलों में यूरेनियम एवं अन्य रेडियोएक्टिव तत्वों के वितरण की सतही अनुक्रिया को सीधे रेडियोमित्तीय पद्धति से आका किया जाता है । गामा रे स्पेक्ट्रोमीटरी प्रत्येक रेडियोएक्टिव तत्वों (विशेष रूप से K,U एवं Th में) के सांद्रण की मापन पद्धति प्रदान करता है । भूमि के भीतर पड़े हुए भूविज्ञान संबंधी शैल समूहों के चुंबकीय गुणों में स्थानीय परिवर्तन का पता लगाने में मैग्नेटिक सर्वेक्षण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के परिमाण में भिन्नताएं दर्ज करता है । विभिन्न भूविज्ञानी भूभागों से अर्जित चुंबकीय डाटा की व्याख्या एवं 2 डी तथा 3 डी माडलिंग से संरचनाओं की उपसतह एवं भूविज्ञानी तथ्यों को जाना जा सका जिसका उपयोग यूरेनियम विश्लेषण में किया गया । टर्नरी इमेजेस अथार्त K(%), Th (ppm) एवं U (ppm) की मिश्रित इमेजेस या स्पेक्ट्रोमेट्रिक डाटा के eU/eTh, eU/K एवं eTh/K के अनुपात के साथ मिश्रित इमेजेस एडवांस डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग प्रौद्योगिकी द्वारा जनित की जाती है । ऑल्ट्रेशन जोन्स की पहचान एवं लिथोलॉजिकल विभेदीय क्षमता के अतिरिक्त ये इमेजेस U, Th एवं Sn, W, REE, Nb एवं Zr के विश्लेषण में भी प्रत्यक्ष रूप में सहायक होती है ।

ए.एफ़.एम.जी. (जेड.टी.ई.एम. - जेड-अक्ष टिपर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक) एक प्राकृतिक स्रोत विद्युत चुम्बकीय भूभौतिकीय अन्वेषण तकनीक है जो ऑडियो फ़्रीक्वेंसी रेंज में ई.एम. सिग्नल का उपयोग करती है। ये प्राकृतिक क्षेत्र समतलीय क्षेत्र होते हैं और क्षैतिज रूप से प्रसारित होते हैं। पार्श्विक क्षेत्र प्रतिक्रिया पृथ्वी में समतलीय चालकता / प्रतिरोध विपर्यास के कारण होती है। हेलिबॉर्न जेडटीईएम प्रणाली में एक क्षैतिज ईएम रिसीवर कॉइल / सेंसर शामिल है जो 1 Hz से 1 किलोहर्ट्ज़ की आवृत्ति रेंज में चुंबकीय क्षेत्र के जेड-घटक को मापता है। ऊर्ध्वाधर ई.एम. फ़ील्ड क्षैतिज बेस स्टेशन को दूरस्थ क्षेत्र सर्वेक्षण के क्षेत्र में स्थित है। यह ZTEM को गहरा (~ 2 कि.मी.) प्रवाहकीय / प्रतिरोधक क्षेत्र मैप करने के लिए एक प्रभावी उपकरण बनाता है। एएमडी ने जिटाईक लिमिटेड, कनाडा के सहयोग से यूरेनियम एक्सप्लोरेशन के गहरे लक्ष्य की पहचान के लिए कुड्डाप्पा बेसिन के कुछ हिस्सों में जेडटीईएम सर्वेक्षण किया है।

प.ख.नि, जी.टी. -1ए हेलीबोर्ने ग्रेविइटर का उपयोग करता है, जो कॉम्पैक्ट, एकल सेंसर, ऊर्ध्वाधर स्केलर, हल्के, कम-पावर जी.पी.एस.-आई.एन.एस. ग्रेविमिटर प्रकार का है और इसमें ग्रहणशीलता परीक्षण लाइन पर फ्री एयर ग्रेविटी विसंगति 0.54 mGal आर.एम.एस. की त्रुटि है, अन्वेषण के अंतर्गत क्षेत्र के लिथो-स्ट्रक्चरल विवरण को चित्रित करने के लिए संसाधित बांगरविसंगति के नक्शे तैयार किए जाते हैं।

भौगोलिक सूचना प्रणाली (जी.आई.एस.) को व्यापक रूप से अन्वेषण आंकड़ों को एकीकृत करने, भूवैज्ञानिक, भू-रासायनिक, सुदूर संवेदन, भू-विज्ञान और खनिज अन्वेषण अनुप्रयोगों के लिए भौगोलिक आंकड़ा का विश्लेषण करने के लिए उपयोग किया जाता है। यूरेनियम की खोज के लिए लक्षित क्षेत्रों की पहचान करने में जी.आई.एस. मॉडलिंग का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है।

चालकता गहराई का प्रतिबिम्ब (CDI) एवं 3डी वोक्सेल मॉडल

प.ख.नि ने फिक्स्ड विंग सर्वे द्वारा चौड़े स्थान की उच्च संवेदनशीलता ए.जी.आर.एस. और ए.एम. 5.7 लाख लाइन कि.मी. क्षेत्र का अधिग्रहण कियाहै। प.ख.नि ने कृष्णा-गोदावरी, कावेरी और दक्षिण रीवा, गोंडवाना बेसिन पर ओ.एन.जी.सी. के लिए डेटा भी प्राप्त किया है। इन ए.जी.आर.एस. और एएम डेटा सेटों का उपयोग करके अंतर्देशीय भारी खनिज निक्षेपों की पहचान की गई हैं। कोटा में राजस्थान परमाणु ऊर्जा संयंत्र (आर.ए.पी.पी.) और कल्पक्कम में मद्रास परमाणु ऊर्जा संयंत्र (एम.ए.पी.पी.) पर पर्यावरण विकिरण की निगरानी के लिए भी इस डेटा का इस्तेमाल किया गया है । प.ख.नि ने उत्तर दिल्ली के फोल्ड बेल्ट, कडप्पा बेसिन, भीम बेसिन, सिंहभूम शीर जोन, उत्तर सिंहभूम शीर क्षेत्र, छत्तीसगढ़ बेसिन, शिलाँग बेसिन, कलडगी बेसिन और विंध्य बेसिन के कुछ भागों में 3.5 लाख लाइन किमी उच्च संकल्प वायु / हेलिबॉर्न (जीआरएस, मेगनेटिक, एफडीएम / टीडीईएम / जेडटीईएम) डेटा प्राप्त किया है। इन डेटा सेटों की समन्वित व्याख्या द्वारा उपसतह खोज के लिए कई लक्ष्य क्षेत्रों की पहचान करने में सहायक सिद्ध हुए है। इसके बाद किए गए के उप-सतह के अन्वेषण ने कई क्षेत्रों में यूरेनियम खनिज उपलब्ध कराएं हैं।

उन्नत इमेज प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर (ई.आर.डी.ए.एस इमेजिन, आई.एल.वी.आई.एस. और ए.एन.वी.आई.); मैपिंग सॉफ्टवेयर (आर्कजीस, ऑटोकैड, गोल्डन सॉफ्टवेयर सर्फर); उन्नत भूभौतिकीय संसाधनमॉडलिंग सॉफ्टवेयर (जीओसॉफ्ट, मैक्सवेल, सीएसआईआरओ मॉडलिंग मॉड्यूल, ईएमएक्सएयर, ईएमएफएलओ, प्रोफाइल विश्लेषक); प्रागा (रेडियोमेट्रिक्स), गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय दोनों के लिए यूबीसी3डी और मॉडल विजन इस ग्रुप पास उपलब्ध हैं।

रिमोट सेंसिंग टेक्नोलॉजी अन्वेषण विधियों में से एक है जो कई अयस्क निक्षेपों से जुड़े परिवर्तन क्षेत्रों की व्यापक श्रेणी को सीधे मैप कर सकती है। फोटो-व्याख्या के सिद्धांतों और तकनीकों के आधार पर, दोष, फ्रैक्चर और भूवैज्ञानिक संपर्क स्पष्ट रूप से प्रकाशित किए जा सके । आईआरएस-वाईफ्स, लिस-तृतीय, लिस -4, पैन, लैंडसैट-ईटीएम, ईटीएम +, स्पॉट और आईआरएस-कार्टोसैट डेटा का उपयोग लिथोस्ट्रक्चर विवरणों के आरेखित करने में किया गया है। रिमोट सेंसिंग टेक्नोलॉजी और प्रगत इमेज प्रोसेसिंग टूल्स में की गई प्रगति के साथ, खनिज क्षेत्रों के चयनित भागों में लिथोलॉजिकल मैपिंग के लिए एस्टर और हाइपरस्पेट्रल-हाइपरियन जैसी बेहतर वर्णक्रमीय और स्थानिक संकल्प के साथ नए सेंसर का उपयोग किया गया है। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सभी प्रकाशित भूवैज्ञानिक और अन्य भूविज्ञान डेटा के साथ एकीकृत विभिन्न रिमोट सेंसिंग डेटा के उपयोग से विषयगत डिजिटल भौगोलिक नक्शे तैयार किए जाते हैं। ये विषयगत मानचित्र भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों के लिए हवाई भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों की योजना बनाते के लिए एक आधार के रूप में लिए जाते हैं और भू-विज्ञान के संदर्भ में हवाई भूभौतिकीय विसंगतियों की व्याख्या में सहायता करते हैं।

राजस्थान में हेलीबोर्न भूभौतिकी सर्वेक्षण (वीडियो)

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