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क्षेत्रफल |
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2,55,000 वर्ग कि.मी. |
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राज्य |
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अरुणाचल प्रदेश, आसाम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड तथा त्रिपुरा । |
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मुख्यालय |
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शिलांग |
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पता |
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परमाणु खनिज अन्वेषण एवं अनुसंधान केंद्र, प.ख.नि. परिसर, डाकघरः नांगमिनसाँग. शिलांग-793 019 (मेघालय) |
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संपर्क सूत्र |
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श्री भास्कर बसु
क्षेत्रीय निदेशक
फोन : +91-364-2912102
ईमेल :rdner[dot]amd[at]gov[dot]in |
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देश के पूर्वोत्तर भाग में परमाणु खनिजों का अन्वेषण कार्य 1950 के दशक में सबसे पहले मेघालय में शुरू हुआ, और बाद में इसे भारत के पूर्वोत्तर भाग के अन्य राज्यों तक विस्तारित किया गया। वर्ष 1975 में पूर्वोत्तर क्षेत्र का क्षेत्रीय मुख्यालय, शिलांग में स्थापित किया गया, जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, असम और सिक्किम राज्यों में अन्वेषण को जारी रखना था, जिन्हें यूरेनियम के अलावा, विरल धातु और विरल मृदा तत्वों के भंडार के लिए सर्वाधिक संभावित राज्यों के रूप में माना गया है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम राज्य शामिल हैं। इस क्षेत्र के उत्तर में हिमालय पर्वत श्रृंखला, दक्षिण में शिलांग मैसिफ पठार, पूर्व में इंडो-म्यांमार रेंज और बीच में असम का मैदानी भाग है, जिसमें ब्रह्मपुत्र नदी प्रवाहित होती है। यहाँ का आर्कियन बेसमेंट ऑर्थो/पैरा-नाईस और असम-मेघालय ग्नाइसिक कॉम्प्लेक्स (AMGC), मिग्माटाइट और मेटा अवसादी शैलों से बना है। प्रोटेरोज़ोइक सुप्राक्रस्टल्स में मेघालय की शिलांग समूह की मेटा अवसाद और अरुणाचल हिमालय की अतिरिक्त प्रायद्वीपीय चट्टानें शामिल हैं। शिलांग समूह की निम्न-श्रेणी की रूपांतरित चट्टानें अनेक भ्रंशों, अल्ट्रामैफिक और अम्लीय सिल्स/डाइक्स द्वारा विच्छेदित हैं। कई नियोप्रोटेरोज़ोइक और युवा ग्रेनाइट प्लूटोन, जैसे माइलियम ग्रेनाइट, दक्षिण खासी बाथोलिथ, काइलांग प्लूटोन, आदि, शिलांग समूह और ग्नाइसिक कॉम्प्लेक्स में अंतःस्थापित हैं। गारो हिल्स में लोअर गोंडवाना की चट्टानें भी पाई जाती हैं। मेसोज़ोइक चट्टानों में जुरासिक सिलहट ट्रैप है, जिसमें बेसाल्ट का पठारी ज्वालामुखी (फ्लड बेसाल्ट), कार्बोनेटाइट और अपर क्रिटेशियस के खासी ग्रुप (जादुकाटा एवं महादेक संरचना) के अवसाद पाए जाते हैं। इनके उपर, हाइड्रोकार्बन की सम्भावना वाले टर्शियरी अवसादें जैसे जैन्तिया, गारो, डुपितिला समूह पाए जाते हैं। कुछ जगहों पर गैर वर्गीकृत क्वाटरनरी एल्यूवियम टर्शियरी चट्टानों के ऊपर तथा गारो हिल्स के दक्षिणी छोर पर फैली हुई है।
1984 में मेघालय के डोमियासियाट में बलुआ पत्थर-प्रकार के यूरेनियम भंडार की खोज ने महादेक बेसिन में कार्बनिक पदार्थ और पाइराइट के रूप में उपलब्ध अपचायकों के साथ मेजबान बलुआ पत्थरों में पैलियोचैनल नियंत्रित यूरेनियम खनिजीकरण की संभावना को जन्म दिया । देश का सबसे बड़ा और समृद्ध सैंडस्टोन प्रकार का यूरेनियम भंडार डोमियासियात—अब क्यलेंग-पिन्डेगसोइयोंग-मावताबाह (KPM) के नाम से जाना जाता है, जो मेघालय के साउथ वेस्ट खासी हिल्स जिले में स्थित है—जिसकी खोज एक आवीक्षण सर्वेक्षण के परिणामस्वरूप हुई। इस क्षेत्र में अन्वेषण ड्रिलिंग और सभी भूवैज्ञानिक अध्ययन 1992 में पूर्ण हुए। इसके बाद परीक्षण खनन और यूरेनियम निष्कर्षण के लिए पायलट स्तर पर फ्लो शीट का परीक्षण भी किया गया। निरंतर जांच प्रयासों से मेघालय के दक्षिण-पश्चिम और पश्चिम खासी हिल्स जिले के वहकिन-वहकुट क्षेत्रों में इसी समान बलुआ-पत्थर प्रकार के यूरेनियम भंडार स्थापित किए गए। अन्य छोटे भंडार उमथोंगकुट, टायरनाई, लास्टोइन और गोमाघाट-फ्लांगडिलोइन स्थलों पर भी स्थापित किए गए हैं।
मेघालय और असम के शिलांग बेसिन में प्रोटेरोज़ोइक विषमविन्यास प्रकार के यूरेनियम खनिजीकरण की ज्ञात घटनाएं लोअर प्रोटेरोज़ोइक टायरसाद मेटापेलाइट्स और मध्य-प्रोटेरोज़ोइक बारापानी क्वार्ट्जाइट्स के इंटरफ़ेस के साथ पाई जाती हैं। मेघालय में मुकला, तिरसाद, परकेश, मावलुम और मुफलांग और असम में तिरसाद-बारापानी शियर ज़ोन और जोंगक्षा शियर ज़ोन के साथ हंसपानी, आकाशीगंगा और बूढ़ीगंगा महत्वपूर्ण स्थान हैं।
ग्रेनाइट से संबंधित यूरेनियम खनिजीकरण की उपस्थिति मेघालय के गारो क्रिस्टलीन्स में पाई गई हैं। मिग्माटाइट में स्थित यूरेनियम खनिजीकरण की पहचान, एनेक- दासोल नाला, डामल नाला, दरुगिरी और अरुवागिरी क्षेत्र, मेधालय के पश्चिम गारो हिल्स जिले में की गई है।
अरुणाचल प्रदेश में, मेटामॉर्फाइट प्रकार का यूरेनियम खनिजकरण प्रोटेरोज़ोइक बोमडिला समूह की ब्रेसीएटेड सिलीसिफाइड और सेरिसिटाइज्ड क्वार्ट्जाइट्स में पश्चिम कामेंग एवं सियांग जिलों के जमिरी, सिए रिमी-नोकों नाला, लग्गी गामलिन, गमकक, टापेयर-जैयोर, कौ नाला, मारो-बरीरिजो और डुपु क्षेत्रों में पाई गई है।
मेघालय की सुंग घाटी और असम के समचम्पी, बारपुंग और जसरा में कार्बोनेटाइट और उससे जुड़ी क्षारीय चट्टानों में विरल मृदा और विरल धातु की उपस्थिति की पहचान की गई है। सुंग घाटी में पाइरोक्लोर, एपेटाइट, मैग्नेटाइट तथा वर्मीकुलाइट खनिज आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
मेघालय के महादेक बेसिन में यूरेनियम अन्वेषण फिलहाल बाहरी लॉजिस्टिक अवरोधों के कारण स्थगित है। हाल के वर्षों में अन्वेषण का केंद्र क्षेत्र के विविध भूवैज्ञानिक सेटिंग्स की ओर स्थानांतरित हो गया है। विशेष रूप से, असम-मेघालय नाईस कॉम्प्लेक्स (AMGC) के भीतर मेटामॉर्फाइट प्रकार के यूरेनियम खनिजीकरण के साथ-साथ सिक्किम और दार्जिलिंग में लेसर हिमालयी शैलों और असम के मिकिर मैसिफ के शिलांग बेसिन में ध्यान केंद्रित किया गया है। इसके साथ-साथ, मेटामॉर्फाइट प्रकार के यूरेनियम खनिजीकरण और इससे संबंधित आरईई खनिजीकरण पर विशेष जोर दिया गया है, विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश के निक्ते और रमगोंग संरचनाओं और सिक्किम में डालिंग समूह की चट्टानों के भीतर । अन्वेषण कार्य सिक्किम और दार्जिलिंग हिमालय के गोंडवाना अनुक्रमों और अंतःस्थापित सायेनाइट्स तक फैला हुआ है, जहां यूरेनियम एवं आरईई खनिजीकरण की संभावना का व्यवस्थित रूप से मूल्यांकन किया जा रहा है।
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