सामान्य जानकारी
क्षेत्रफल |
: |
7, 00, 000 वर्ग कि.मी. |
राज्य |
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महाराष्ट्र के भाग, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ |
मुख्यालय |
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नागपुर |
पता |
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क्षेत्रीय अन्वेषण एवं अनुसंधान केन्द्र, प.ख.नि.परिसर, सिविल लाइन्स, नागपुर-440 001. |
संपर्क सूत्र |
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श्री एस.आर.मंथनवार, र्क्षत्रीय निदेशक
फोन : 0712-2564469
फैक्स : 011-2561438
ई- मेल : rdcr.amd@gov.in |
यह क्षेत्र 1958 के दौरान पश्चिमी क्षेत्र के रूप में नागपुर में एक किराए के आवास में स्थापित किया गया था, तथा 1988 के दौरान इसके दो भाग बनाए गए, पश्चिमी क्षेत्र-I, जिसका मुख्यालय नागपुर में तथा पश्चिमी क्षेत्र-II, जिसका मुख्यालय बड़ौदा (अब वडोदरा) में रखे गये । पश्चिमी क्षेत्र-II के बन्द होने के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र का नामकरण मध्यवर्ती क्षेत्र के रूप में किया गया तथा 1994 में कार्यालय व प्रयोगशाला को इसके परिसर में स्थापित किया गया। अधिकारियों तथा स्टाफ की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस क्षेत्र में आवासीय क्वार्टर्स भी बनाए गए हैं ।
स्थूल भूवैज्ञानिक लक्षण
सामान्य तौर पर मध्यवर्ती क्षेत्र के विस्तृत हिस्सों में निम्नलिखित भूवैज्ञानिक इलाके पाए गए हैं ।
यह क्षेत्र भूवैज्ञानिक रूप से बहुत ही सशक्त क्षेत्र रहा है जहाँ आर्कियन कल्प से लेकर फेनिरोज़ॉइक कल्प तक के विभिन्न स्तर का भूपर्पटी विकास संरक्षित रहा है।
(i) आर्कियन से निचले प्रोटेरोज़ॉइक बेसमेण्ट क्रेटॉन जिनमें 2.2 बिलियन वर्ष से 2.5 बिलियन वर्ष के (बुन्देलखंड, डोंगरगढ़ तथा मलंझखंड ग्रेनाइट्स) प्रोटेरोज़ॉइक ग्रेनाइट्स शामिल हैं । ये अवसादें पश्च आर्कियन से लेकर शुरुआती प्रोटेरोज़ॉइक अनुपाट (विभंजन) (रिफ्ट) / गतिशील (मोबाइल) बेल्टों के इर्द-गिर्द हैं जोकि ग्रीनशिस्ट संलक्षणी में कायांतरित हैं । उच्च-ग्रेड गतिशील (मोबाइल) बेल्ट्स, जिनका संबंध स्थलमंडलीय(लिथोस्फेरिक) विकास से है, उच्च ग्रेड के कणकीय शैल से ऐम्फिबोलाइट संलक्षणी के रूप में परिलक्षित होते हैं तथा पूर्वी मध्य प्रदेश से लेकर छोटा नागपुर के पठार तक तरुण अवसादों से युक्त हैं । निचले प्रोटेरोज़ॉइक शैल के अन्य समूह, उच्चस्तरीय विरुपित ज्वालामुखीय-अवसादी अनुक्रम को अभिवर्णित करते हैं । कोटरी-डोंगरगढ़ सुपर समूह, सकोली, सौसर समूह के प्रोटेरोज़ॉइक सुपराक्रस्टल बेल्ट्स जो कि बस्तर क्रेटॉन के पश्चिम मध्यवर्ती इलाके तथा महाकोशल समूह पर स्थित हैं, महत्वपूर्ण विवर्तनीय कायांतरित (टेक्टोमेटामॉर्फिक) इकाईयों के रूप में दिखाई पड़ते हैं ।
(ii) अवसादी बेसिनों से आबद्ध, मध्य से ऊपरी प्रोटेरोज़ॉइक रिफ्ट :
ये विस्तरण विवर्तनिक प्रवृत्ति से आबद्ध महाद्वीपीय अपवर्तनी वातावरण के रूप में दिखाई पड़ते हैं जिनमें निम्नलिखित बेसिन - उदाहरण के लिए अबुझमर, खैरागढ़, इंद्रावती, छत्तीसगढ़, खरियर, अम्पानी इत्यादि प्रोटरोज़ॉइक बेसिनें शामिल हैं जो विश्व में विषमविन्यास संबंधी डिपॉज़िटें हैं, विस्तृत रूप में मध्यवर्ती भारत में विकसित किए गए हैं तथा ऐसे बेसिनों के चौदह में से नौ बेसिन मध्यवर्ती क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं ।
(iii) पुराजीवी-मध्यजीवी कल्प के गोंडवाना अवसाद : ये आंतरक्रेटोनिक-अनुपाटिक (गतिशील) बेसिनों में निक्षेपित हैं, मध्यवर्ती क्षेत्र के बड़े हिस्से में पाए गए हैं ।
(iv) मध्यजीवी कल्प के दक्षिणी ट्रैप्स : ये इस क्षेत्र का लगभग 60% हिस्से में पाए गए हैं ।
अन्वेषणों का सार : महत्वपूर्ण खोजें
प्राग्जीव (प्रोटेरोज़ॉइक) अधिपर्पटीय(सुपराक्रस्टल) तथा क्रिस्टलीय (क्रिस्टालिन्स) के एक बडे़ हिस्से को रेडियोमेट्रिक सर्वेक्षण की सीमा में रखा गया था । कुछ यूरेनियम डिपॉज़िटों की पहचान कर ली गई है, वे हैं :
बोदलः यह मध्य प्रदेश के राजनांदगाँव जिले में स्थित है । यहाँ बड़ी मात्रा में प्राग्जीव (प्रोटेरोज़ॉइक) द्वि-प्रायिकता वाले ज्वालामुखीय शैल पाए गए हैं । यहाँ यूरेनियम डिपॉज़िट शिरा टाइप का है जो 1000 मीटर के नतिलम्ब में 400 मीटर तक की ऊर्ध्वाधर गहराई में स्थापित है ।
जाजावल : यह मध्य प्रदेश के सरगुजा जिले में स्थित है । यहाँ बड़ी मात्रा में प्राग्जीव (प्रोटेरोज़ॉइक) क्रिस्टलीय (क्रिस्टालिन्स) शैल पाए गए हैं । यहाँ यूरेनियम डिपॉज़िट शिरा टाइप का है जो दो भागों 300 मीटर के (मध्यवर्ती भाग) तथा 485 मीटर के (पश्चिमी भाग) में अधिकतम 400 मीटर तक की ऊर्ध्वाधर गहराई में स्थापित है ।
अन्य अल्प यूरेनियम डिपॉज़िटों की निम्न रूप में पहचान की गई है :
क्रसं. |
स्थान |
जिला |
प्राप्य शैल / बेसिन |
1 |
दमहाथ |
सरगुजा, मध्य प्रदेश |
प्राग्जीव (प्रोटेरोज़ॉइक) क्रिस्टलीय |
2 |
धाबी |
सरगुजा, मध्य प्रदेश |
आर्कियन क्रिस्टलीय साइनाइट्स |
3 |
भंडारिटोला |
राजनांदगाँव जिला, मध्य प्रदेश |
प्राग्जीव (प्रोटेरोज़ॉइक) अम्ल ज्वालामुखीय |
4 |
मोगर्रा |
भंडारा जिला, महाराष्ट्र |
खैरागढ़ बालुकाश्म |
गोंडवाना बेसिन में अन्वेषण से कुछ जगहों पर जैसे लालबर्रा (माण्डला जिला, मध्य प्रदेश), पोलापत्थर (बैतूल जिला, मध्य प्रदेश) में यूरेनियम होने का पता चला है । यद्यपि इन जगहों पर अन्वेषणात्मक ड्रिलिंग की गई थी किन्तु अब तक मध्यवर्ती भारत के गोंडवाना बेसिन में स्पर्श-गम्य यूरेनियम संसाधन को स्थापित नहीं किया जा सका है ।
यूरेनियम के अलावा, विरल धातु तथा विरल मृदा के लिए किए गए सर्वेक्षणों के परिणामस्वरूप मध्य प्रदेश के रायगढ़ जिले में सिरी नदी के नदीतटीय प्लेसर में झिनोटाइम (भारी विरल मृदा युक्त यट्रिम फॉस्फेट खनिज) के भरपूर संसाधन तथा छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में मुन्दवाल, बोदेनार, छलानपाडया में व उड़ीसा के झारसुगुडया में पंडिकीमल-जंगापाड़ा में पेग्माटाइट्स में Nb-Ta उपस्थितियाँ होने का पता चला है । ये खनिजों को छोटे पैमाने पर इन उपस्थितियाँ से प्राप्त किया जा रहा है ।
अन्वेषणों के वर्तमान मुख्य लक्ष्य-क्षेत्र
हालांकि निचले प्राग्जीव (प्रोटेरोज़ॉइक) / आर्कियन बेसमेण्ट में, बड़ी संख्या में मध्य प्राग्जीव (प्रोटेरेज़ॉइक) बेसिन विषमविन्यास कॉन्टैक्ट शामिल हैं, फिर भी ये विषमविन्यास युक्त यूरेनियम उपस्थितियों (ऑकरेन्सेस)के लिए सशक्त स्थान माने गए हैं । इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए , इद्रावती तथा छत्तीसगढ़ बेसिनों में बड़े पैमाने पर अन्वेषण कार्य आरंभ किए गए हैं ।
मध्यवर्ती क्षेत्र में उपलब्ध अन्य सुविधाएँ
गामा किरण स्पेक्ट्रोमीटर्स के लिए तलीय अंशांकन पट्टियाँ (ग्राउण्ड कैलिब्रेशन पैड्स)
यह भारत में अपने तरह का एक मात्र विशेष सुविधा उपलब्ध है जिसे सिविल हवाई अड्डे, नागपुर में प.ख.नि.ने वायुवाहित सर्वेक्षण तथा तलीय सर्वेक्षण के लिए गामा किरण स्पेक्ट्रोमीटर के अंशांकन (कैलिब्रेशन) के लिए निर्मित किया है। इस सुविधा का निर्माण आई.ए.ई.ए. के विनिर्देशनों के अनुसार पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से किया गया है, तथा यह देश के विभिन्न संगठनों के साथ-साथ विश्वविद्यालयों के रेडियोमेट्रिक उपकरणों के अंशांकन (कैलिब्रेशन) के लिए ’राष्ट्रीय सुविधा’ के रूप में सेवारत है ।
विश्लेषणात्मक (ऐनालिटिकल) प्रयोगशाला
यह क्षेत्र निम्नलिखित सुविधाओं से सुसज्जित है ।